टेलीफोन का अर्थ परिभाषा और इतिहास क्या है? जाने Telephone ka Arth Aur Paribhasha

टेलीफोन (Telephone) का अर्थ क्या है? टेलीफोन की परिभाषा क्या है? और उसका इतिहास क्या है? आप टेलीफोन से भलीभांति परिचित होंगे आज काल मोबाइल का जमाना है लेकिन मोबाइल से पहले टेलीफोन का जमाना था जब हम एक दूसरे से बात करते थे। ठीक आज इसी रोचक जानकारी में हम आपको टेलीफोन के अर्थ और परिभाषा (Telephone ka Arth Aur Paribhasha) बताने वाले हैं।

टेलीफोन का अर्थ क्या है? (Telephone ka Arth)

टेलीफोन शब्द अंग्रेजी के तीन पदों से मिलकर बना है टेल-ई-फोन, जिसका अर्थ होता है दूर की ध्वनि। हिन्दी में इसके लिए ‘दूरभाष’ शब्द का प्रयोग किया है जाता है, जिसमें अंग्रेजी का यह शब्द पूर्णतः (Telephone) अनुवादित हो सका है।

टेलीफोन की परिभाषा (Telephone Ki Paribhasha) है-‘An instrument which converts sound, specifically the human voice, to electrical impulses of various frequencies and then back to a tone that sounds like the origional voice’ 379fa हिन्दी में इसे इस प्रकार समझा जा सकता है।

Telephone ka Arth Aur Paribhasha
Telephone ka Arth Aur Paribhasha

Telephone Ki Paribhasha Hindi: दूरभाष टेलीफोन एक ऐसा उपकरण है जो मनुष्य की आवाज को विद्युत प्रवाहों के विविध कंपनों के जरिए ज्यों-का त्यों प्रत्यावर्तित कर देता है। ‘ टेलीफोन में ट्रांसमीटर वह महत्त्वपूर्ण घटक है जो ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिणत कर देता है।

इसमें उच्चरित ध्वनि तरंगें एक तनुपट (Diaphragm) में, जिसके पीछे रखे हुए कार्बन के कण (Granules) परस्पर निकट आते हैं और फैलते हैं जिससे तीव्र कंपन होता है। कार्बन के कणों में प्रतिरोध क्रमशः घटता-बढ़ता रहता है जिस कारण टेलीफोन चक्र में प्रवाहित विद्युतधारा की प्रबलता भी कम या अधिक होती रहती है। एक सेकण्ड में धारा के मान में जितनी। बार परिवर्तन होता है उसे उसकी आवृत्ति (Frequency) कहते हैं।

ट्रांसमीटर में कार्बन प्रकोष्ठ की रचना (Carbon Cell In Transmitter)

सामान्यतः 250 से 5000 प्रति सेकंड तक की आवृत्तियों को सुगमता से प्रेषित किया जाता है। अगर यह आवृत्ति 25000 चक्र प्रति सेकंड हो जाय तो अत्यधिक उत्कृष्ट मानी जाती है। प्रेषित (Transmitter) एवं ग्राही (Reviever) की इस विशेषता के कारण ही श्रोता को वक्ता की वार्ता ठीक ऐसी प्रतीत होती है कि मानों वह पास ही कहीं बोल रहा है।

ट्रांसमीटर (Transmitter) में एक तनुपट होता है जो सिरों पर अत्यंत में पट होता है जो सिरों पर अत्यंत दृढ़ता से कसा होता है वक्ता के मुख से प्रस्फुटित ध्वनि इस पर वायु के माध्यम से पड़ती है। उच्चरित ध्वनि है। की तीव्रता और मंदता के अनुसार परदे पर पड़ने वाला वायु का दबाव भी घटता बढ़ता रहता है।

ट्रांसमीटर में कार्बन (Carbon Cell In Transmitter) प्रकोष्ठ की रचना इस प्रकार की जाती है कि उसकी यांत्रिक द्भद्दकावट न्यून हो ताकि प्रेषित की किसी भी स्थिति के लिए उच्च अधिमिश्रण दक्षता (Modulating Efficiency) प्राप्त हो। अभीष्ट आवृत्ति अनुक्रिया (Frequency Response) प्राप्त करने के लिए पर्दे को दोहरी अनुनादी प्रणाली (Resonrant system) से संयुक्त कर दिया जाता है,

जिससे केबल में अधिक से अधिक तार रखे जा सकें। टेलीफोन तारों (Telephone Wiring) में विद्युत धारा की प्रबलता स्थिर रखने के लिए भारण कुंडली (Loading Coils) का भी उपयोग किया जाता है।

टेलीफोन प्रणाली विकास (Telephone System Development)

उच्च आवृत्ति वाली प्रत्यावर्ती धारा के उपयोग से टेलीफोन प्रणाली में एक अन्य महत्त्वपूर्ण विकास हुआ है। टेलीफोन वार्ता (Telephone Conversation) द्वारा उत्पन्न होने वाली विभिन्न प्रकार की तरंगों को संयुक्त करके प्रत्यावर्ती धारा एक वाहक धारा (Carrier Current) को जन्म देती है।

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केन्द्रीय संग्राही स्टेशन पर उन विभिन्न प्रकार के संकेत तरंगों की इस धारा में से छंटनी होती है, फिर उन्हें उनके उचित स्थान पर संप्रेषित (Transmit) किया जाता है। टेलीफोन प्रणाली में स्विच पट्ट भी एक महत्त्वपूर्ण अंग होता है। इसकी संचना अत्यंत जटिल होती है।

आधुनिक यंत्रकला और तकनीकी कौशल (Modern Mechanical And Technical Skills)

यह आधुनिक यंत्रकला और तकनीकी कौशल (Modern Mechanical And Technical Skills) का एक उत्कृष्ट नमूना है। यह केन्द्रीय टेलीफोन के बीच में रहता है। सभी टेलीफोन इससे जुड़े रहते हैं। प्रत्येक टेलीफोन के नम्बर इस पट्ट पर अंकित होते हैं और प्रत्येक नम्बर के ऊपर एक छोटा-सा बल्ब लगा रहता है।

जब आप टेलीफोन (Telephone) उठाते हैं तब यह बल्ब जल उठता है और इसके सम्मुख बैठा हुआ टेलीफोन आपरेटर एक प्लग द्वारा अपने हेडफोन का सम्बंध आपके टेलीफोन से स्थापित करता है। वह अपने सामने लगे हुए बटन को दबाकर दूसरे टेलीफोन की घंटी बजाता है।

इस प्रकार वह दूसरे स्थान के व्यक्ति को सूचना देकर आप दोनों की वार्ता प्रारंभ करता है। यदि दूसरे टेलीफोन का सम्बंध उस केन्द्र से नहीं होता तो वह उस केन्द्र से जहाँ से वांछित टेलीफोन का सम्बंध होता है आपके Telephone को जोड़ देता है।

टेलीफोन के इतिहास को जाने (History Of Telephone)

टेलीफोन के इतिहास (History Of Telephone) को जानने के पूर्व उसके आविष्कारक ग्राहमबेल का यह कथन ध्यातव्य है-‘ यदि मैं विद्युत धारा की तीव्रता को ध्वनि के उतार-चढ़ाव के अनुसार उसी प्रकार न्यूनाधिक करने की व्यवस्था कर पाऊँ जैसा ध्वनि संचरण के समय वायु के घनत्व में होता है, तो मैं मुख से बोले गए शब्दों को भी टेलीग्रॉफ मैं की विधि से एक स्थान से दूसरे स्थान को संचारित कर सकने में समर्थ हो सकूँगा।

दूरभाष का विकास (Development of Telephone) दूरभाष (टेलीफोन) एक ऐसा संचार माध्यम है जिसका प्रयोग अन्य माध्यमों की अपेक्षा विश्व में सर्वाधिक है। दूरभाष के उद्गम को लेकर विभिन्न मतभेदों के बावजूद यह सर्व-स्वीकार्य तथ्य है कि इसके आविष्कार का श्रेय स्काटलैंड (Scotland) के एडिनबर्ग नगर में 3 मार्च, 1847 ई. में जन्म लेने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलेक्जेण्डर ग्राहम बेल (Alexander Graham Bell) को दिया जाता है।

इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों ने दूरभाष के प्रारम्भकर्ताओं में अन्तोनियो मीयुसी फिलिप रेइस, एलिसाग्रे को भी स्वीकार किया है। ग्राहम बेल ने अपने सहयोगी थॉमस वाटसन के साथ मिलकर 10 मार्च, 1876 में जब पहली बार इलेक्ट्रॉनिक अभिकरणों के माध्यम से इस वाक्य को पूरी तरह संप्रेषित किया कि ‘Watson, come here, I want to you’ तभी से टेलीफोन की शुरुआत मानी जाती है।

ध्वनि तरंगों को विद्युत धारा में बदला (Converting Sound Waves Into Electric Current)

सन् 1831 ई. में एक अंग्रेज वैज्ञानिक फैराडे (English scientist Faraday) ने यह सिद्ध किया कि मेटल की ध्वनि तरंगों को विद्युत धारा में बदला जा सकता है। यही टेलीफोन का तकनीकी आधार है लेकिन तीस-चालीस वर्षों तक यह बात लोगों की समझ में नहीं आई।

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जर्मनी (Germany) के वैज्ञानिक जॉन फिलिप रेइस (John Philip Reiss) ने जब यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि विद्युत के माध्यम से ध्वनियाँ अपने मूल रूप में प्रत्यावर्तित होती हैं, यानी ध्वनियों को विशेष वैद्युत युक्ति द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर संप्रेषित किया जा सकता है और पुनः उसी रूप में उसे लौटाया भी जा सकता है, तभी से दूरभाष की सैद्धान्तिक तैयार हुई।

सूचना क्रान्ति का मूल आधार (Fundamentals Of Information Revolution)

टेलीफोन वर्तमान सूचना क्रान्ति का मूल आधार है। एस.टी.डी. (STD) यानी सब्सक्राइबर ट्रंक डाइलिंग सेवा के माध्यम से हम देश के एक कोने से दूसरे कोने तक संदेश पहुँचा सकते हैं। इस सुविधा में प्रत्येक शहर का एक कोड नम्बर होता है जिन्हें व्यक्तिगत नम्बर से पहले डॉयल करना होता है।

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इसी तरह आई. एस. डी. (ISD) अर्थात् इंटरनेशनल सब्सक्राइबर डायलिंग भी एक देश से दूसरे देश में फोन द्वारा बात करने की सुविधाएँ देता है। एस.टी.डी. (STD) ने जहाँ हमें देश के एक कौन से दूसरे कोने तक जोड़ दिया है वहीं आई.एस.डी. (ISD) के माध्यम से हम पलक मारते ही विश्व के किसी भी भाग से संदेश ले और दे सकते हैं।

निष्कर्ष

दोस्तों आपने ऊपर दी गई जानकारी में टेलीफोन के बारे में जानकारी पड़ी, टेलीफोन का अर्थ परिभाषा और इतिहास (Telephone ka Arth Aur Paribhasha) के बारे में जाना। वास्तव में टेलीफोन ने एक नई क्रांति ला दी थी अब हम इसे मोबाइल कन्वर्ट के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। आशा है आपको यह जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। पोस्ट पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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